Parking becomes a headache in Chandigarh

 चंडीगढ़ में पार्किंग बनती सिरदर्दी, प्रशासन-जनता मिलकर निकाले समाधान

Parking becomes a headache in Chandigarh

Parking becomes a headache in Chandigarh

Parking becomes a headache in Chandigarh- चंडीगढ़ में आजकल गाडिय़ों के लिए न रोड पर जगह मिल पा रही है और न ही उन्हें खड़ी करने के लिए सेक्टरों के अंदर। जो लोग निवासी हैं और अपने घरों के आगे अपनी गाडिय़ां (Vehicle) लगाते हैं, उनके लिए नई मुसीबत की आहट है, हालांकि जो लोग शहर में बाहर से काम, नौकरी (Job) या फिर खरीदारी के लिए आते हैं, उनके लिए भी यह चुनौतीपूर्ण होता है कि अपनी गाड़ी को कहीं पार्क करके जा सकें।

शहर में पार्किंग की समस्या दिनोंं-दिन बढ़ती जा रही है, प्रशासन (Administration) सेक्टर-17 में मल्टी स्टोरी पार्किंग (Multi Story Parking) बनवा चुका है, लेकिन वह भी कमतर पड़ती जा रही है, इसके अलावा सेक्टर-22, 17, 35, 18,19 जैसी जगहों पर पार्किंग फुल होने से सडक़ों पर ही लाइनें लग रही हैं। इन सब हालात के बीच प्रशासन की ओर से सेक्टरों में घरों के बाहर पेड पार्किंग लागू करने का प्रस्ताव लाया गया है। इस प्रस्ताव के जरिए प्रशासन चाहता है कि घरों के आगे निवासियों की खड़ी होने वाली गाडिय़ों से भी पार्किंग शुल्क वसूला जाए।

जाहिर है, प्रशासन (Administration) का खजाना भरने का यह किसी अधिकारी का ब्राइट आइडिया होगा, लेकिन जैसा कि हो रहा है, क्या इस आइडिया को लागू किया जा सकता है? तकनीकी रूप से प्रशासन ने नगर निगम (Municipal Corporation) के माध्यम से यह करवाने की कोशिश की है, लेकिन नगर निगम की बैठक में यह एजेंडा मेयर ने पेश ही नहीं किया। इसकी वजह राजनीतिक है, क्योंकि न कांग्रेस और न ही आप के पार्षद घरों के बाहर पेड पार्किंग लागू कराने को तैयार हैं, भाजपा पार्षदों के लिए भी इसे स्वीकार करना मुश्किल है।

शहर में सभी रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन (Residents Welfare Association) और दूसरे सामाजिक संगठन भी इसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं। पार्षदों का कहना है कि अगर ऐसा ही रहा तो प्रशासन शहर में सडक़ों पर चलने के लिए भी टैक्स मांग सकता है। प्रशासन और नगर निगम (Municipal Corporation) का कार्य जनता को सुविधाएं प्रदान करना है। चंडीगढ़ से प्रत्येक वर्ष आठ हजार करोड़ रुपये का टैक्स केंद्र सरकार को मिलता है, लेकिन इसके बावजूद शहर में सुविधाओं का अभाव नजर आता है।

नगर निगम (Municipal Corporation) ने जिन सेक्टरों में पेड पार्किंग की है, वहां भी सुविधाएं नहीं मिलती। यह सुनिश्चित ही नहीं होता है कि पर्ची कटवाने के बाद पार्किंग के अंदर जगह मिल भी जाएगी। गाडिय़ां बेतरतीब करके लगवाई जाती हैं, जिन्हें देखने वाला कोई नहीं होता। ऐसे में घरों के बाहर पेड पार्किंग लागू करके प्रशासन अपना फायदा तो कर लेगा लेकिन उन निवासियों का क्या होगा, जोकि वहीं रहते हैं। फिर उन लोगों का क्या हाल होगा, जोकि बाहर से खरीदारी के लिए आते हैं, या अपने नाते-रिश्तेदारों के घर आते हैं। उनकी गाडिय़ां कहां खड़ी होंगी। अगर कोई पैसे देकर गाड़ी खड़ी कर रहा है तो फिर उस जगह पर दूसरी गाड़ी क्यों खड़ी होने देगा। ऐसे में झगड़े बढ़ेंगे, सेक्टरों के अंदर पेड पार्किंग लागू करने के बाकी नियम कैसे होंगे, यह भी सवाल है।

अब बेशक निगम की बैठक में यह एजेंडा नहीं आया है, लेकिन प्रशासन (Administration) घरों के बाहर पेड पार्किंग लागू करने पर आमादा है। राजनीतिक तौर पर इस प्रस्ताव को कभी स्वीकृति नहीं मिलेगी, लेकिन प्रशासन अपने तौर पर इसे लागू कर सकता है। सबसे पहले सेक्टर 35 में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में पेड पार्किंग लागू करने की योजना है। ऐसे में यह विचार किया जाना जरूरी है कि क्या घरों के बाहर पेड पार्किंग लागू करना सही होगा? सेक्टरों के अंदर आमतौर पर चलने तक की जगह नहीं बचती है, पार्षद और जनता इसका विरोध कर रही है, लेकिन प्रशासन और उसके अधिकारी इसे लागू करने को तैयार हैं।

हालांकि सवाल यह है कि अगर जनता पर पेड पार्किंग (paid parking) के जरिए और बोझ डाला जाएगा तो क्या उन्हें और सुविधाएं मिल पाएंगी। शहर में जमीन उतनी ही है, लेकिन हर वर्ष हजारों की तादाद में नई गाडिय़ां बढ़ती जा रही हैं, इन गाडिय़ों को कहां खड़ा किया जाएगा। चंडीगढ़ में नए बनने वाले मकानों के लिए पार्किंग पहले सुनिश्चित किया जाना जरूरी किया गया है। जोकि सही है। बावजूद इसके अभी भी ज्यादातर गाडियां बाहर सडक पर ही खड़ी की जाती हैं। क्या यह माना जाए कि घरों के बाहर पेड पार्किंग करके प्रशासन लोगों को सजा देना चाहता है, और कभी आने वाले समय में प्रशासन घरों में गाड़ी खड़ी करने पर भी पेड पार्किंग शुरु न कर दे।

प्रशासन को इस तरह के फैसले लेने से पूर्व सभी पहलुओं पर विचार किया जाना चाहिए कि लोकतंत्र में प्रशासन शहर के नागरिकों पर थोपने वाले फैसलों पर विचार करे। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण होगा। यदि प्रशासन घरों के बाहर खड़ी गाडिय़ों के लिए भी पेड पार्किंग शुश्र करता है इस तरह के फैसलों पर निर्णय जनता की मर्जी से करने चाहिए। इस संबंध में नगर संबंध में नगर सांसद व सभी राजनैतिक दलों को इस तरह के फैसलों पर एकजुटता का परिचय देते हुए सख्त विरोध करने की जरूरत है। क्योंकि जिस समय ये घर बने तब न तो इतनी गाडिय़ां थीं और न ही पार्किंग का बंदोबस्त खुद करने की जरूरत।

दरअसल, ऐसे प्रस्ताव का विरोध होगा ही, लेकिन इस मामले ने भविष्य के हालात का खुलासा कर दिया है। भविष्य में और गाडिय़ां बढ़ेंगी, उन्हें पार्क करने के लिए ज्यादा जगह चाहिए होगी। शहर में मोनो और मेट्रो रेल चलाने का प्रस्ताव कई वर्षों से लंबित है, उसका विरोध और समर्थन दोनों हो रहे हैं। अगर मेट्रो चलती है तो चंडीगढ़ वह शहर नहीं रह जाएगा, जो उसकी पहचान है।

वह कंक्रीट का जंगल बन जाएगा, वहीं अगर ऐसे प्रोजेक्ट नहीं आते हैं तो शहर में एक सडक़ से गुजरने में ही घंटों लगना मामूली बात होगी। आखिर ऐसे मामलों का फिर समाधान क्या है? केंद्र सरकार ने तो स्क्रैप पॉलिसी भी लागू कर दी है, लेकिन एक गाड़ी की मियाद 10 वर्ष तो रहेगी, यानी 10 वर्षों तक उसे पार्क करने की जहमत रहेगी ही। वास्तव में यह समय पब्लिक को ऐसे मामलों के प्रति संवेदनशील होने का है। एक व्यक्ति अगर कहीं जाता है तो वह भी गाड़ी का इस्तेमाल कर रहा है, और उसके साथ चार लोग और जा रहे हैं तो वे भी गाड़ी प्रयोग कर रहे हैं। क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि गाडिय़ों का प्रयोग कम से कम हो और दोपहिया वाहनों का प्रयोग ज्यादा बढ़े। जापान, इंगलैंड के शहरों में तो लोग साइकिल से ही अपना काम चला लेते हैं, यह मामला जीवन प्रणाली का है।

भारत में लोग गाडिय़ों में चलना शान समझते हैं, हर दूसरे-तीसरे वर्ष गाडिय़ों को बदलते रहते हैं, उनके लिए पार्क करने की जगह हो या नहीं। अगर हम लंबी दूरी तय करते हैं तो गाड़ी का प्रयोग करें या फिर पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग करें। लेकिन अगर शहर में एक जगह से दूसरी जगह जाना है तो दोपहिया वाहनों का प्रयोग करें। पार्किंग हर शहर के लिए समस्या बन चुकी है या फिर बनने वाली है, उसका समाधान जहां सरकार, प्रशासन को करना होगा वहीं आम जनता को भी उसमें प्रतिभागिता दिखानी होगी। 

 

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